सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के बीच टकराव में किसका पलड़ा भारी

 हाल ही में सामने आईं कुछ रिपोर्टों से पता चला है कि लाल सागर से गुज़रने वाले जहाज़ों पर यमन के हूती विद्रोहियों के जो हमले हो रहे हैं, उनका मुक़ाबला करने के लिए की जा रही अमेरिकी कोशिशों को झटका लगा है. दरअसल, अमेरिका के खाड़ी के सहयोगी देश यूएई और सऊदी अरब के बीच मतभेद की वजह से उसे ऐसा करना पड़ा है.

ब्लूमबर्ग न्यूज़ ने यमनी और सऊदी अधिकारियों का हवाला देते हुए बताया कि अबू धाबी हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई का समर्थन करता है, जबकि रियाद को आशंका है कि इस तरह का तनाव हूतियों के साथ युद्धविराम की कोशिशों को नुक़सान पहुंचा सकता है.यह पहली बार नहीं है कि दोनों खाड़ी अरब सहयोगियों के बीच मतभेद सामने आए हैं.


यूएई और सऊदी अरब के बीच हमेशा आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक साझेदारी रही है, जो कि दोनों खाड़ी पड़ोसियों के एक जगह होने और सामान्य हितों का परिणाम है. इसके अलावा, दोनों को इस क्षेत्र में आम चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जिससे वे कई क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर एकजुट सहयोगी बन जाते हैं.

लेकिन ये देखते हुए कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात अर्थव्यवस्था और जनसंख्या के मामले में खाड़ी सहयोग परिषद में दो सबसे बड़े देश हैं, उनके बीच प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक हो सकती है, ख़ासकर जब कोई नया संगठन बनता हो.

दोनों देशों के शासकों के लक्ष्य, महत्वाकांक्षाएं और दृष्टिकोण कभी-कभी उनके समकक्षों से अलग-अलग होते हैं.

हालाँकि यह मुक़ाबला आमतौर पर पर्दे के पीछे होता है, लेकिन ऐसे मामले भी हैं जिनमें दोनों देशों के हित टकराते हैं, जिसकी वजह से विश्लेषकों ने उनके संबंधों में दरार की ओर इशारा किया है.

दोनों देशों के बीच पिछले दो दशकों के दौरान सबसे अहम आर्थिक संघर्षों में से एक शायद खाड़ी सहयोग परिषद के सेंट्रल बैंक के मुख्यालय की मेज़बानी को लेकर रहा है. रियाद ने इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई थी और वो खाड़ी मौद्रिक संघ के समझौते से हट गया था.

इसकी वजह से एक खाड़ी मुद्रा और परिषद से जुड़े एक केंद्रीय बैंक को जारी करने की योजना को बाधित करने में अहम भूमिका निभाई थी.

जुलाई 2021 में, सऊदी अरब कोविड-19 महामारी के दौरान तेल की कीमतों में भारी गिरावट के जवाब में ओपेक प्लस सदस्य देशों के उत्पादन में कटौती के फ़ैसले का विस्तार करना चाहता था, जो अप्रैल 2022 में समाप्त होने वाला था. ताकि सदस्य देशों के नुक़सान की भरपाई की जा सकती और बाज़ार की स्थिरता को बनाया रखा जा सके.

हालाँकि, अमीरात के ऊर्जा मंत्री सोहेल अल मज़रुई ने अपने देश के उत्पादन में हिस्सेदारी बढ़ाने पर ज़ोर देते हुए मीडिया बयानों में कहा कि 'हमने जितना धैर्य और त्याग किया है, उससे अधिक अन्याय और त्याग की निरंतरता को स्वीकार करना हमारे लिए संभव नहीं है.

इसके एक महीने बाद समझौता हो गया, लेकिन तनाव बरक़रार रहा और यूएई के ओपेक प्लस से हटने के इरादे के बारे में अटकलें और अफ़वाहें थीं, जिसका यूएई के अधिकारियों ने खंडन किया.

पूर्व अमेरिकी राजनयिक डॉक्टर चार्ल्स डन का मानना है कि हालांकि "पार्टियों ने संघर्ष को कम किया, लेकिन इसने सऊदी अरब पर हावी होने की इच्छा के रूप में यूएई के ग़ुस्से को दिखाया."

इस घटना के कारण दो राजनीतिक रूप से शक्तिशाली खाड़ी देशों के बीच ओपेक के भीतर और बाहर तनाव पैदा हो गया.

हाल के सालों में, सऊदी अरब ने अपने आर्थिक स्रोतों में विविधता लाने में तेज़ी लाई है जो उसके 2030 विज़न का हिस्सा है. इसमें तेल पर निर्भरता कम करना, बुनियादी ढांचे को बढ़ाना, विमानन, पर्यटन और खेल जैसे क्षेत्रों में अपनी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय भूमिका का विस्तार करना शामिल है.

इस क़दम के बाद यह माना जा रहा है कि खाड़ी और मध्य पूर्व में व्यापार और निवेश का केंद्र बनने के लिए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के बीच प्रतिस्पर्धा होगी.

उदाहरण के लिए, सऊदी अरब ने इस साल की शुरुआत में सऊदी पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड के स्वामित्व वाली एक नई एयरलाइन, रियाद एयर शुरू करने की घोषणा की.

कंपनी अपने खाड़ी पड़ोसियों, विशेष रूप से एमिरेट्स एयरलाइंस और एतिहाद एयरवेज़ के साथ प्रतिस्पर्धा करेगी, क्योंकि इसका लक्ष्य 2030 तक 100 से अधिक जगहों के लिए उड़ानें शुरू करना है.

जानकारों के मुताबिक़ सऊदी अरब ने खाड़ी पड़ोसी देश को एक और आर्थिक चुनौती दे दी है.


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