एनीमिया दूर करने के लिए जागरूकता बेहद जरूरी, सामुदायिक पहल से निपटेंगे इस चुनौती से

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 52.2 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की आशंका 9.4% कम होती है। सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी भारत में इसका प्रभावित करती है।एनीमिया एक बड़ी समस्‍या है। इसमें रेड ब्‍लड सेल्‍स कम हो जाते हैं जिससे महिलाओं के स्वास्थ्य और विकास पर दूरगामी प्रभाव पड़ते हैं।

नई दिल्ली, जागरण डेस्क। एनीमिया, भारत में वर्षों से गंभीर स्वास्थ्य समस्या कारक स्थिति रही है, महिलाओं में इसका खतरा अधिक देखा जाता रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 52.2 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की आशंका 9.4% कम होती है। सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी भारत में इसका प्रभावित करती है।


दुनिया भर में किशोरियों को पेश आने वाली स्वास्थ्य से जुड़ी अनगिनत चुनौतियों के बीच, एनीमिया एक बहुत बड़ी समस्‍या के रूप सामने आई है। इसमें रेड ब्‍लड सेल्‍स कम हो जाते हैं, जिससे महिलाओं के स्वास्थ्य और विकास पर दूरगामी प्रभाव पड़ते हैं। चिंता करने वाली बात यह है कि 15-19 के आयु वर्ग की लड़कियों में से 59.1% लड़कियाँ एनीमिया से पीडि़त हैं। इसकी यह व्‍यापकता अधिकतम पोषण और स्वास्थ्य पद्धतियों पर केंद्रित हस्तक्षेप और जागरूकता अभियानों की तत्काल आवश्यकता को दर्शाते हैं।


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एनीमिया के दुष्परिणाम ज्यादा
इसके अलावा, एनीमिया का प्रभाव व्यक्ति तक पहुंचकर, स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाता है। एनीमिया से पीड़ित और पोषण की कमी वाली महिलाओं द्वारा कम वजन वाले या समय से पहले बच्चे पैदा होने की संभावना अधिक होती है। जिसके बाद उनमें इस स्थिति का खतरा बढ़ जाता है। मां से बच्चे में एनीमिया का बढ़ना न केवल प्रसव के दौरान स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ाता है,
बल्कि महिलाओं और लड़कियों के लिए व्यापक और निरंतर स्वास्थ्य रणनीतियों के माध्यम से इस मुद्दे को संबोधित करने की तात्कालिकता को भी रेखांकित करता है। भारत के उतार-चढ़ाव वाले माहौल में एक मौन संघर्ष चल रहा है।

ग्रामीण महिलाएं ज्यादा पीड़ित
एनीमिया और कुपोषण लगातार बड़ी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों महिलाओं के स्वास्थ्य और भविष्य को प्रभावित कर रही हैं। इस पृष्ठभूमि वाले परिदृश्‍य में कन्या एक्सप्रेस कार्यक्रम आशा की एक किरण बनकर सामने आया है, जो लक्षित स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की कायाकल्‍प करने देने वाली शक्ति का प्रतीक है।

सिकल सेल एनीमिया को जड़ से खत्म करने के लिए पिछले बजट में किया था एलान
बजट के दौरान सिकल सेल एनीमिया बीमारी का भी जिक्र करते हुए इसे 2047 तक जड़ से खत्म करने का लक्ष्य रखा गया था। पिछले बजट के दौरान वित्त मंत्री ने बताया कि सिकल सेल एनीमिया से 0 से 40 वर्ष तक के लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं। इससे निपटने के लिए 7 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग का लक्ष्य रखा गया था।

संगठन चला रहे हैं पहल
इस परिप्रेक्ष्‍य में, कन्या एक्सप्रेस सिर्फ एक स्वास्थ्य देखभाल पहल नहीं बल्कि उससे बढ़कर है। यह भारत के परियोजना क्षेत्रों में किशोरियों के लिए एक जीवन रेखा है। बंसीधर और इला पांडा फाउंडेशन (बीआईपीएफ) द्वारा 2021 में लॉन्च किया गया यह कार्यक्रम विशेष रूप से इस कमजोर आबादी की जरूरतों को पूरा करता है। कन्या एक्सप्रेस एक अनुकूलित मोबाइल स्वास्थ्य वाहन है, जो दूरदराज के गांवों और समुदायों तक पहुंचने के लिए एक सरल समाधान है। यह वाहन हीमोग्लोबिन की जांच और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) को मापने के साथ नियमित स्वास्थ्य जांच करने में एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो सीधे किशोर एनीमिया और कुपोषण की दोहरी समस्‍या से लड़ता है। अब तक, कन्या एक्सप्रेस 34 ग्राम पंचायतों और 158 गांवों तक पहुंची है और 9500 से अधिक किशोरियों को देखभाल के दायरे में लाया गया है।

जाजपुर जिले के केंदुधिपि, सुकिंदा के एक आदिवासी समुदाय की लड़की 17 वर्षीय पूजा देहुरी कहती है ''मुझमें कभी भी पर्याप्त ताकत नहीं थी, मैं बहुत जल्‍दी थक जाती थी और ध्‍यान नहीं लगा पाती थी। लेकिन अब चीजें काफी बेहतर हो गई हैं, और मेरे इस कायाकल्‍प की वजह कन्या एक्सप्रेस है। यह कार्यक्रम जीवन को बदलने के लिए लक्षित स्वास्थ्य कार्यक्रमों की क्षमता का एक प्रमाण है। यह विशेष रूप से किशोरियों की विशिष्‍ट जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में निरंतर निवेश और नवाचार की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है । जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ रहा है और इसका विस्‍तार हो रहा है, यह दूसरों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल बन रहा है, यह उस गहन प्रभाव की याद दिलाता है कि विचारशील, अच्छी तरह कार्यान्वित की गई स्वास्थ्य पहल पीढ़ियों तक कायम रहने वाले बदलाव लाने का सामर्थ्‍य रखती हैं।

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